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सोशल मीडिया के इस्तेमाल में दिमाग का प्रयोग करें, दिल का नहीं

लाइफ टाइपराइटर
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जब स्मार्टफ़ोन का अविष्कार हुआ होगा तो किसी ने भी ये नहीं सोचा होगा कि इसका इस्तेमाल दुनिया के सबसे खतनाक हथियार की तरह हो सकता है। नहीं नहीं, मैं इससे होने वाली बीमारियों की बात नहीं कर रहा हूँ, बल्कि मैं तो इससे होने वाली लड़ाइयों की बात कर रहा रहा हूँ। आज हमारे देश में जितने भी दंगे हो रहे हैं, उसमें से ९०% दंगों का कारण यही स्मार्टफ़ोन और कह सकते हैं कि सोशल मीडिया है। अगर इन चीजों का प्रभाव हमारे समाज पर इतना नहीं होता, तो क्यों कहीं भी दंगे भड़कते ही इंटरनेट की सेवा बंद कर दी जाती है। इसका सिर्फ और सिर्फ एक ही कारण है, अफवाहें और कह सकते हैं “फेक न्यूज़ “।


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आज हमारे समाज में लोग दिमाग से ज्यादा दिल से सोचते हैं, उनकी भावनायें कुछ ज्यादा ही जल्दी दुःख जाती हैं और वो कभी भी उग्र हो सकते हैं। बहुत से लोग इसका फायदा अपने झूठे प्रोपेगेंडा फैलाने में करते हैं और आगे भी करेंगे। बहुत से लोगों के घर इन झूठे प्रोपेगेंडा फैलाने से चल रहे हैं, लोगों को गुमराह किया जा रहा है और सबसे अच्छी बात ये है कि इस बात को बिना जाने लोग गुमराह हो भी रहे हैं।


सोशल मीडिया का इस्तेमाल सोशल लाइफ जीने के लिए होना चाहिए था, पर आज तो इसका इस्तेमाल न्यूज़ बांटने में हो रहा है। मैं मानता हूँ न्यूज़ बांटना गलत नहीं है, पर प्रामाणिकता क्या है इन न्यूज़ की। क्या कभी कोई ये जानने की कोशिश करता है? नहीं, करेगा भी कैसे, क्योंकि खबर पहुंचाई ही ऐसे जाती है कि आम लोग खबर पढ़कर सिर्फ दिल से सोचें, दिमाग से नहीं। अगर आपने अपने दिमाग का इस्तमाल कर लिया, तो उन लोगों का घर कैसे चलेगा। आम जनता का इतना अच्छी तरह से इस्तेमाल हो रहा है और लोगों को पता भी नहीं है।


आज फेसबुक पर कोई भी धर्म से जुड़ी हुई चीज पोस्ट करता है और लोगों को आपस में लड़ा देता है। क्या कभी आप लोगों ने उस पोस्ट को शेयर करने से पहले उसकी सच्‍चाई जाननी चाही है। नहीं, कभी भी नहीं, क्योकि धर्म और जाति के नाम पर हम लोगों को इतना कमजोर बना दिए गया है कि जैसे ही कहीं भी हमारा धर्म और जाति आती है, हम अपने सोचने की शक्ति खो देते हैं और विभिन्‍न तरह के लोग इसका फायदा उठा लेते हैं। क्या वाकई में हमारे धर्म ने हमें इतना कमजोर बना दिया है?


आज बहुत सी जगहों पर लोग आपस में फेक न्यूज़ पर लड़ रहे होते हैं और अपनी बातों को सच साबित करने के लिए विभिन्‍न तरह के तर्क दे रहे होते हैं। पर उसमें से किसी ने अपनी ही खबर की सच्‍चाई जानने की कोशिश नहीं की। आज ४० से ज्यादा के उम्र के लोग इन फेक न्यूज़ का शिकार सबसे ज्यादा हो रहे हैं, उन लोगों के लिए उनके व्हाट्सएेप या फेसबुक पर लिखी हुई बात पत्थर की लखीर जैसी होती है। वो उस पर आंख बंद करके यकीन करते हैं, उन लोगों में भी जागरूकता फैलाना बहुत जरूरी हो गया है, अगर आज हमें अपना समाज बचाना है तो।


कभी खबर आती है कि १० के सिक्के नकली हैं और कभी खबर आती है कि ५०० के नोट में गाँधी जी के पास तार वाला नोट असली है। कोई भी कुछ भी पोस्ट कर रहा है और हम आम लोग उसे मान रहे हैं, बिना उसकी जांच किए। न जाने कितने लोगों ने नुकसान उठाया है इन फेक न्यूज़ की वजह से और आगे भी उठाते रहेंगे।


आज लोगों को मसालेदार खबरें ज्यादा आकर्षित करती हैं, सच खबरों से ज्यादा। हम लोग उन खबरों की तरफ ज्यादा आकर्षित होते हैं, जिन खबरों में अश्लीलता होती है। क्या हमारी ठरक पर हमारा कोई काबू नहीं है क्या? क्या हम इतने कमजोर हैं? आज यूट्यूब पर अश्लील वीडियोज क्यों ट्रेंडिंग में होते हैं? सिर्फ एक ही जवाब है इस सबका, हम सिर्फ देखना ही गलत चाहते हैं। हम लोग जिंदगी के मजे लेने में इतने मशगूल हो रहे हैं कि अपनी सच्‍चाई से ही दूर हो रहे हैं।


आज हम लोगों को समझना चाहिए कि टेक्नोलॉजी के युग में सच्‍चाई से खेलना कोई नयी बात नहीं है। कोई भी फोटो कभी भी बदली जा सकती है, किसी भी वीडियो को कभी भी गलत बनाया जा सकता है। व्हाट्सऐप और फेसबुक न्यूज़ चैनल्स नहीं हैं, बल्कि सोशल साइट्स हैं,  तो जिसका जो काम है वो वही रहे तो अच्छा है।


हां, बोलने की आज़ादी सबको है, पर सच बोलने की आज़ादी, ना कि अफवाह फैलाने की, लोगों की भावनाओं से खेलने की। हम लोगों को भी समझना चाहिये की हर यूट्यूब चैनल पर बता रहा आदमी इकोनॉमिस्ट नहीं है, हर पॉलिटिकल चैनल पर बैठा आदमी पॉलिटिशियन नहीं है। सोशल मीडिया के इस्तेमाल के समय दिमाग का प्रयोग करें, दिल का नहीं। इस देश को तोड़ने वाले लोग बहुत कम हैं, पर उन लोगों कि इशारों पर नाचने वाले बहुत सारे, तो हमारी समझ हमारे हाथ में है। ना मुर्ख बनें और ना ही बनायें।

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